सोमवार, 27 अप्रैल 2015

महायज्ञ

बात दर असल 2003 की है ! दिल्ली मे मेरे पड़ोस मे एक सज्जन रहते थे ! उनका नाम तो याद नही लेकिन लोग “लंबू सिंह”  कह कर उन्हे संबोधित करते थे ! वे पुश्तैनी रूप से गोरखपुर उत्तर प्रदेश के मूल निवासी थे ! यहाँ आई सी डी तुगलकबाद मे ट्रेलर चलाते थे ! घर मे पत्नी और 3 बच्चे, (2 लड़के और एक लड़की) ! दो की उम्र लगभग 5-7 साल रही होगी और तीसरा तो सिर्फ़ 6 महीने का ही लगभग रहा होगा तभी लंबू सिंह की पत्नी का देहांत हो गया था !
लंबू की पत्नी की मृत्यु से कुछ दिनों पहले लंबू के पिताजी दिल्ली आए हुए थे, बात चीत से पता चला कि गाओं मे वे लोग संभ्रांत परिवार से हैं ! पिताजी गोरखपुर मे ही किसी प्राइमरी स्कूल मे शिक्षक थे!
लंबू की पत्नी के देहांत के 3-4 महीने बाद तक उसके परिवार से कोई भी दिल्ली नही आया उससे मिलने के लिए ! अचानक एक दिन उसका बड़ा भाई आया और उसके छोटे बेटे जिसकी उम्र लगभग 6 महीने की रही होगी, उसे अपने साथ ले गया और उसे अडॉप्ट कर लिया, लेकिन उसके अन्य दोनो बच्चों के विषय मे किसी ने ध्यान नही दिया !
अचानक एक दिन पता नही लंबू सिंह के मन मे आया, अपने एक पड़ोसी (जिसको वह 2-4 सालों से जानता था ) के पास अपने दोनो बच्चो को छोड़ कर चला गया, यह कहकर कि कहीं गाड़ी ले जानी है शाम तक वापस आएँगे ! तब तक उनका ख़याल रखे !
वो दिन था कि 21.04.2015 का दिन था, कभी मुड़ कर वापस नही आया! समय के बहुत बड़े-बड़े पंख होते हैं भैया, बहुत जल्दी बीत गये, लड़की भी शादी करने के लायक हो गयी ! आज जब समय इतना गंदा हो गया कि भाई भाई की मदद करने मे हिचकता है, एक भाई दूसरे भाई की बेटी की शादी मे भी पैसे खर्च करने से कतराता है, तो ऐसे समय मे वही परिवार जिसके पास बच्चों को छोड़ कर गया था, उन्होने एक अच्छे घर परिवार मे उसकी शादी तय कर दी ! अक्षय तृतीया के दिन, दिनांक 21.04.2015 को उसका विवाह संपन्न हुआ !
और विवाह मे वो सब कुछ किया और दिया जो एक माता-पिता की ख्वाहिश होती है, करने और देने की !
क्या कोई बता सकता है कि इनका क्या रिश्ता रहा होगा ! दर असल रिश्तों की बात ही बेमानी है
कहानी मे तो मैने उस परिवार का परिचय तो दिया ही नही ! घर की मुखिया श्री मति पुष्पा देवी, व्यवसाय- बूटिक़ (साड़ी मे फॉल लगाना, पेटीकोट वग़ैरह सीलना, और उसके दो बच्चे भी है, दोनो  रेहडी पर  फल बेचते हैं!
यदि यही काम कोई नेता या बड़ा आदमी करता तो ये न्यूज़ चैनल और अख़बारों की हेडलाइन होती! लेकिन एक आम परिवार द्वारा किया गया इतना बड़ा सत्कर्म, इस चका चौंध मे भी छुप गया!
इनके इस सत्कर्म की जितनी भी बड़ाई की जाय उतना ही कम है !

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