23 मार्च
1931 को लाहोर मे भगत
सिंह , सुखदेव और राजगुरु
को फाँसी दी
गयी थी ! और
आज 85 बरस बाद उसी
लाहोर मे यह कहानी अचानक फिर से उभर कर आती है कि भगत सिंह दोषी थे या निर्दोष !
जिस तरह की
मीडीया रिपोर्ट्स सामने आई
हैं उनसे तो
यह संदेह उभर
ही जाता है
कि फनस्ी ग़लत
तरीके से , ग़लत
व्यक्ति के द्वारा
दी गयी ! पाकिस्तान
की भगत सिंह
मेमोरियल फाउंडेशन द्वारा एक
याचिका दायर की
गई थी कि
जिस मुक़दमे मे
उन्हें फाँसी की सज़ा
सुनाई गयी
थी उसकी FIR की
कॉपी उन्हें दी
जाए ! यह याचिका
इम्तियाज़
रशीद कुरेशी फाउनडिंग
चेयरमैन भगत
सिंह मेमोरियल फाउंडेशन
द्वारा दाखिल की गयी थी , जिसमे उन्होने
दलील दी थी कि शहीद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु ये तीनों ही अविभाजित भारत की स्वतंत्रता
की लड़ाई लड़ रहे थे , उन्हें ग़लत तरीके से फाँसी दी गयी थी, भगत सिंह को अपना पक्ष
भी नहीं रखने दिया गया था , इसलिए इस केस की फिर से सुवाई की जाए , इसके अलावा यह राष्ट्रीय
सम्मान का भी मामला है क्योंकि जिन्ना ने भी उन्हे दो बार श्रद्धांजलि अर्पित की थी
!
मीडीया रिपोर्ट्स के मुताबिक
इम्तियाज़ रशीद कुरैशी
ने यह भी
दलील दी कि
सरदार भगत सिंह
के केस की
सुनवाई उस समय
जिस ट्रिब्यूनल ने
की थी , उसका
गठन को ब्रिटिश
पार्लियामेंट ने मंज़ूरी
नही दी थी
जिसकी वजह से
वह ट्रिब्यूनल असंवैधानिक
हो गयी थी
! उनके डेथ वारंट
की तारीख भी
एक्स्पायर हो चुकी
थी , बाद मे
जिस रजिस्ट्रार ने
नया डेथ वारंट
जारी किया था
, वह सक्षम अधिकारी
नहीं था , और सबसे बड़ी बात कि जिस पुलिस अधिकारी सानड़र्स की हत्या के
जुर्म मे उन तीनों को फाँसी दी गयी थी उसकी FIR मे सरदार भगत सिंह का नाम ही नहीं था
!
तो कैसे .. कैसे दुनिया
के इतने बड़े
बैरिस्टर जवाहर लाल नेहरू
और मोहनदास करमचंद
गाँधी इन
बारीकियों को समझ
नही पाए ! केस
की सुनवाई के
दौरान इन मुद्दों
को नहीं उठाया
! मुझे तो शक
है कि कहीं
सुभाष चंद्र बोस
से पहले सरदार
भगत सिंह भी
तो किसी षड्यंत्र
का शिकार तो
नहीं हो गये
! हो जो भी
देखना रोचक होगा
की पाकिस्तान की
अदालत क्या 85 बरस
बाद भी उन
सिपाहियों को न्याय
दिला पाती है
! यदि हाँ .... तो
कई संभ्रांत चेहरों
के पीछे छिपी
कालिख उजागर हो
जाएगी !
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