कोई अपनी पत्नी की सुविधा के लिए क्या कर सकता है, सोचिए? फ्रिज, कूलर, वाशिंग मशीन आदि। लेकिन अपनी पत्नी की सुविधा के लिए कोई पहाड़ को ही काट दे तो? हैरान हो गये ना! आइए उनकी कहानी पढ़ते हैं-
मैं बात कर रहा हूँ गया जिले के एक अति पिछड़े गांव गहलौर में रहनेवाले दशरथ मांझी की। गहलौर एक ऐसी जगह है जहाँ पानी के लिए भी लोगों को तीन किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था। वहीँ अपने परिवार के साथ एक छोटे से झोपड़े में रहने वाले पेशे से मजदूर श्री दशरथ मांझी ने गहलौर पहाड़ को अकेले दम पर चीर कर 360 फीट लंबा और 30 फीट चौड़ा रास्ता बना दिया। इसकी वजह से गया जिले के अत्री और वजीरगंज ब्लाक के बीच कि दूरी 80 किलोमीटर से घट कर मात्र 3 किलोमीटर रह गयी। ज़ाहिर है इससे उनके गांव वालों को काफी सहूलियत हो गयी।
और इस पहाड़ जैसे काम को करने के लिए उन्होंने किसी डायनामाइट या मशीन का इस्तेमाल नहीं किया, उन्होंने तो सिर्फ अपनी छेनी-हथौड़ी से ही ये कारनामा कर दिखाया। इस काम को करने के लिए उन्होंने ना जाने कितनी ही दिक्कतों का सामना किया, कभी लोग उन्हें पागल कहते तो कभी सनकी, यहाँ तक कि घर वालों ने भी शुरू में उनका काफी विरोध किया, पर अपनी धुन के पक्के दशरथ मांझी ने किसी की न सुनी और एक बार जो छेनी-हथौड़ी उठाई तो बाईस साल बाद ही उसे छोड़ा। जी हाँ सन 1960 जब वो 25 साल के भी नहीं थे, तबसे हाथ में छेनी-हथौड़ी लिये वे बाइस साल पहाड़ काटते रहे। रात-दिन, आंधी-पानी की चिंता किये बिना दशरथ मांझी नामुमकिन को मुमकिन करने में जुटे रहे। अंतत: पहाड़ को झुकना ही पड़ा। 22 साल (1960-1982) के अथक परिश्रम के बाद ही उनका यह कार्य पूर्ण हुआ। पर उन्हें हमेशा यह अफ़सोस रहा कि जिस पत्नी कि परेशानियों को देखकर उनके मन में यह काम करने का जज्बा आया अब वही उनके बनाये इस रस्ते पर चलने के लिए जीवित नहीं थी।
श्री दशरथ मांझी को यह प्रेरणा कहाँ से मिली, पता है? रोज की भाँति दशरथ मांझी की पत्नी श्री मती फाल्गुनी देवी गहलोर पर्वत पार कर पानी के लिए जाती थी । एक दिन उदास होकर खाली हाथ आपस आई तो दशरथ जी के पूछने पर बताया कि पैर फिसल जाने के कारण उनकी मटकी भी फुट गई और उनके पाँव मे चोट भी आई । बस इसी से पर्वत को चीर कर रास्ता बनाने की प्रेरणा मिली।